दो पल – अतीत के (हौसला)
यह बात करीब 1970 की है, मैं अपनी ठोडी को दोनो हथेलियों पर टिकायें और दोनो कोहनियों को मेज पर रखे अचेतनता की उन्मीलित मुद्रा में कक्षा में बैठा था।…
उत्तर प्रदेश के मुसलमानों की आर्थिक बदहाली का ज़िम्मेदार कौन?
(मुसलमानों की अपनी सियासी लीडरशिप न होने की वजह से उनकी आवाज़ उठानेवाला भी कोई नहीं है) कलीमुल हफ़ीज़ किसी इन्सान की ख़ुशहाली और तरक़्क़ी उसकी माली हालत पर डिपेंड…
पूरे देश में लागू होना चाहिए मॉब लिंचिंग विधेयक
हमजा सूफियान झारखंड की विधानसभा झारखंड की विधानसभा ने ‘मॉब हिंसा एवं मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक, 2021’ पारित किया, जिसमें हर व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों की और भीड़ से हिंसा…
बुज़दिली को हमने पहनाया है हिकमत का लिबास
‘ (सारी दुनिया अपनी फ़तह के ख़्वाब देखती है और उसे पूरा करने के लिये प्लानिंग करती है और हम किसी की हार देखकर मुत्मइन हैं) कलीमुल हफ़ीज़ हिकमत और…
किसी न किसी हैसियत में तो अपनी उपयोगिता साबित कीजिये
ताक़त का इस्तेमाल ज़ुल्म करने के लिये नहीं बल्कि ज़ुल्म को रोकने और ख़त्म करने के लिये होना चाहिये कलीमुल हफ़ीज़ अल्लाह ने इंसान को बेहतरीन शक्ल-सूरत के साथ पैदा…
प्रधानमन्त्री मोदी को शर्म आई, मगर गोदी मीडिया को शर्म कब आएगी?
कलीमुल हफ़ीज़ लोकतान्त्रिक व्यवस्था में शक्ति का स्रोत जनता होती है। ये वाक्य सुनते-सुनते हमने जवानी की देहलीज़ पार करके बुढ़ापे में क़दम रख लिया था, मगर कभी इसको प्रेक्टिकली…
केवल एक होने की नहीं बल्कि संगठित होने की भी ज़रूरत है’
कलीमुल हफ़ीज़ मुसलमानों की समस्याओं का जब और जहाँ ज़िक्र आता है, उनके हल के तौर पर सबसे पहला हल यही पेश किया जाता है कि मुसलमान एक हो जाएँ…
एएमयू का तराना ‘ये मेरा चमन है मेरा चमन’ लिखने वाले मजाज़ की 111वीं यौम ए पैदाइश
मजाज़ की 111वीं यौम ए पैदाइश पर खिराज ए अकीदत Professor Jasim Mohammad सर शार-ए-निगाह-ऐ-नरगिस हूं, पाबस्ता-ऐ-गेसू-ऐ-सुंबुल हूं।ये मेरा चमन है मेरा चमन, मैं अपने चमन का बुलबुल हूं। मजाज़…
हर अलीग पर सर सैयद का ये कर्ज़ है कि वो क़ौम की जहालत दूर करने के लिए तालीम का काम करे
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी हिंदुस्तानी मुसलमानों की तालीम के सिलसिले में रीढ़ की हड्डी की हैसियत रखती है कलीमुल हफ़ीज़ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को क़ायम हुए एक सदी हो चुकी है।…
भरोसा कर नहीं सकते ग़ुलामों की बसीरत पर
अपनी लीडरशिप की ज़रूरत से इनकार ज़ेहनी ग़ुलामी की इन्तिहा और अपनी तारीख़ से नावाक़फ़ियत है कलीमुल हफ़ीज़ इन्सान जब अपने बुलन्द मक़ाम को भूल जाता है तो इन्तिहाई पस्ती…