अलीगढ़ 3 मईः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग द्वारा ‘भारतीय अंग्रेजी कविताः तोरु दत्त से वनविल के. रवि’ पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आज समापन हो गया। सम्मेलन में भारतीय अंग्रेजी कवियों के योगदान का जश्न मनाया गया, भारतीय संवेदनशीलता की अभिव्यक्ति पर जोर दिया गया और इसका एक कैनन बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
समापन सत्र की मुख्य अतिथि उर्दू और अंग्रेजी की द्विभाषी कवयित्री डॉ जोया जैदी ने विषय पर अपने विचार व्यक्त किए और कहा कि भाषा अपने आप में एक संस्कृति है, न कि केवल संचार का साधन। उन्होंने अपनी कुछ कविताएँ, जैसे ‘द बीज अनाउंसमेंट’ और ‘लाइफ इज एन ओशन डीप एंड वाइड’ पढ़ीं और एक स्व-रचित उर्दू नज्म, ‘आईये बैठिये’ पढ़कर अपनी बात समाप्त की।
इससे पूर्व, डॉ. जोया जैदी मुख्य अतिथि का स्वागत करते और उनका परिचय देते हुए प्रो मोहम्मद आसिम सिद्दीकी (विभागाध्यक्ष, अंग्रेजी विभाग) ने कहा कि डॉ. जैदी को साहित्य से असाधारण प्रेम है और वह ऐसी कविता लिखती हैं जो कई प्रसिद्ध कवियों के बराबर है। उन्होंने प्रोफेसर जाहिदा जैदी के करिश्माई व्यक्तित्व और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रति उनके योगदान को भी याद किया।
समापन कार्यक्रम से पूर्व आयोजित सत्र को सम्बोधित करते हुए प्रो. अमीना काजी अंसारी ने ‘फ्रॉम द क्रिएटिव टू द क्रिटिकलः ऑन इवॉल्विंग ए पोएटिक्स फॉर इंडियन इंग्लिश पोएट्री’ विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने भारतीय अनुभव और संवेदनशीलता के बारे में दो क्षेत्रों पर अपने विचार व्यक्त किए, जिन पर भारतीय अंग्रेजी कवियों के कार्यों के संदर्भ में प्रतिक्रिया व्यक्त की जाती है।
उन्होंने भारतीय अनुभव और संवेदनशीलता के बारे में दो क्षेत्रों पर अपने विचार व्यक्त किए, जिन पर अमूमन भारतीय अंग्रेजी कवियों के कार्यों के संदर्भ में प्रतिक्रिया व्यक्त की जाती है। उन्होंने भारतीय अंग्रेजी कविता का मूल्यांकन करने के लिए अपनी कविताओं के माध्यम से समकालीन कविता को पढ़ने के तरीकों को रेखांकित किया। उन्होंने भारतीय अनुभव और पहचान के उपविषय की ओर ध्यान आकर्षित किया और बताया कि कैसे साहित्य केवल एक दर्पण नहीं है, यह एक मानचित्र भी है, मन का भूगोल भी है।
एक कनाडाई विद्वान द्वारा प्रयुक्त एक नए शब्द ‘देशस्केप’ की चर्चा करते हुए प्रोफेसर काजी ने कहा कि प्रख्यात आलोचकों के अनुसार राष्ट्र एक ऐतिहासिक विचार है जो परंपरा, संस्कृति और विचारों से उत्पन्न होता है। उन्होंने निसिम एजेकील की कविता ‘गुडबाय पार्टी फॉर मिस पुष्पा टी.एस.’ पर चर्चा की जो भारत में शहरी कामकाजी वर्ग के परिवेश और भारतीय अंग्रेजी के उत्कृष्ट वर्ग पर केंद्रित है।
प्रो. काजी ने अनुवाद की कला के बारे में भी बात की और चर्चा की कि कैसे हम अंग्रेजी में भारतीय लेखन की भावना के राजा राव के विचार से एक लंबा सफर तय कर चुके हैं और कैसे हमारी पहचान औपनिवेशिक, उत्तर-औपनिवेशिक से नव-औपनिवेशिक में परिवर्तित हो चुकी है।
अपने मुख्य भाषण में, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित कवि, आलोचक, अनुवादक और अकादमिक, डॉ सुकृता पॉल कुमार ने अंग्रेजी में भारतीय कविता लिखने के लिए एक बुनियादी शर्त के रूप में सीमांतता पर जोर देकर ‘ओविंग द लिमिनलः इंडियन इंग्लिश पोएट्री’ के बारे में बात की।
उन्होंने दो या दो से अधिक भाषाओं के बीच सीमितता के लाभ के रूप में कई संस्कृतियों का अभ्यास करने की क्षमता पर प्रकाश डाला।
प्रो. मोहम्मद आसिम सिद्दीकी ने कवि श्री वनविल के. रवि, प्रो.रानू उनियाल पंत और प्रो. समी रफीक के साथ ‘सेलिब्रेटिंग इंडियन इंग्लिश पोएट्री’ विषय पर बातचीत में भारतीय अंग्रेजी कविता के विभिन्न रूपों और प्रयासों और साहित्यिक रचनात्मकता के उत्तर-औपनिवेशिक पहलुओं को परिभाषित करने में भारतीय अनुवादकों की भूमिका पर चर्चा की । दो भाषाओं में कविता लिखने में संभावित कठिनाइयों पर प्रो. सिद्दीकी के सवाल का जवाब देते हुए, श्री रवि ने टिप्पणी की कि कविता उनके पास स्वाभाविक रूप से आती है और भाषा गौण है। कला संकाय के डीन, प्रो. आरिफ नजीर ने टिप्पणी की कि कविता जीवन का सार है और अर्थ और दिशा देती है। प्रो. नजीर ने विविध विषयों पर कुछ कविताएँ सुनाईं।
देश भर से लगभग 50 गणमान्य व्यक्तियों ने आठ व्यापक समानांतर पेपर रीडिंग सत्रों में भाग लिया। सम्मेलन में पहचान, लोकगीत, मिथक, आध्यात्मिकता, भक्ति से लेकर पारिस्थितिक नारीवाद और पारिस्थितिकवाद तक के विषयों पर 45 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।
सम्मेलन की संयोजक डा. मुनीरा टी ने धन्यवाद किया। सम्मेलन के सह-संयोजक डॉ साकिब अबरार ने सम्मेलन की रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसके बाद प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरण किया गया।