गुडग़ांव, 17 अप्रैल। बिजली चोरी के मामले को अदालत द्वारा गलत करार दिए जाने के बाद बिजली निगम को एक लाख 84 हजार 607 रुपए जुर्माना राशि के बदले उपभोक्ता को 5 लाख 27 हजार 656 रुपए वापिस करने पड़ गए। अदालत ने जुर्माना राशि का भुगतान 24 प्रतिशत ब्याज दर से करने के आदेश दिए थे। कहीं अदालत बिजली निगम का बैंक अकाउंट अटैच न कर दे, इस डर से बिजली निगम को पूरी धनराशि का भुगतान करना पड़ गया। डीएलएफ फेस 2 क्षेत्र के उपभोक्ता देवेंद्र सिंह के अधिवक्ता क्षितिज मेहता से प्राप्त जानकारी के अनुसार उपभोक्ता का बिजली निगम ने 28 मई 2015 को बिजली का मीटर उतारकर उसे लैब में चैक कराया था। उपभोक्ता पर आरोप लगाए गए थे कि वह बिजली मीटर से छेड़छाड़ कर बिजली की चोरी कर रहा है और उस पर एक लाख 84 हजार 607 रुपए का जुर्माना भी लगा दिया था। अधिवक्ता का कहना है कि उपभोक्ता ने बिजली निगम को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि वह बिजली की चोरी नहीं कर रहा था, लेकिन बिजली निगम ने उसकी एक नहीं सुनी। थक-हारकर उसने बिजली निगम के खिलाफ अदालत में केस दायर कर दिया था। तत्कालीन सिविल जज सुमित्रा कादियान की अदालत ने 22 जनवरी 2021 को उपभोक्ता के हक में फैसला सुनाते हुए बिजली चोरी के आरोप को गलत करार दिया था और बिजली निगम को आदेश दिए थे कि वह जमा कराई गई जुर्माना राशि का भुगतान उपभोक्ता को 24 प्रतिशत ब्याज दर से करे। लेकिन बिजली निगम ने ऐसा नहीं किया। उपभोक्ता ने सिविल जज की अदालत में एग्जिक्यूशन पिटीशन दायर कर दी थी। इसी दौरान 6 दिसम्बर 2022 को उपभोक्ता देवेंद्र सिंह की मृत्यु हो गई। उनके पुत्र विजय पाल ने इस केस को अदालत में लड़ा। उपभोक्ता का कहना है कि बिजली विभाग की समझ में आ गया कि यदि उसने जुर्माना राशि का ब्याज सहित भुगतान नहीं किया तो बिजली निगम का बैंक अकाउंट अटैच कर दिया जाएगा। इसलिए बिजली निगम को एक लाख 84 हजार 607 रुपए की एवज में 5 लाख 27 हजार 656 रुपए देने पड़ गए। अधिवक्ता का कहना है कि बिजली निगम के अधिकारी व कर्मचारी बिजली चोरी के आरोप लगाकर इस प्रकार के मामले बनाते रहे हैं। जिनमें से अधिकांश को अदालत गलत करार भी दे चुकी है।
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