अलीगढ़, 19 जुलाईः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कल्चरल एजूकेशन सेंटर (सीईसी) से जुड़े तबला वादक डॉ. शहाबुर रहमान चिश्ती ने एक प्रशिक्षक के रूप में सर्ब अकाल म्यूजिक सोसाइटी ऑफ कैलगरी, कनाडा द्वारा आयोजित तबला संगीत समारोह में भाग लिया तथा ताल और तबला वादन की कला पर एक ऑनलाइन व्याख्यान दिया जिसमें उन्होंने कैलगरी के सर्ब अकाल म्यूजिक सोसाइटी के सहायक समन्वयक श्री गरदीप सिंह के साथ बातचीत की, संगीत की बारीकियों, इंटरलॉकिंग लय और तबला का प्रदर्शन भी किया।भारत और कनाडा के प्रतिभागियों ने सत्र के हर पल का आनंद लिया और संगीत की बारीकियों के बारे में सवाल पूछे। डॉ. चिश्ती ने ‘ताल’ कभी जोर से तो कभी धीरे-धीरे और चुपचाप गाया। उन्होंने संगीत कार्यक्रम में ताल की विभिन्न शैलियों की भी व्याख्या की।उन्होंने कहा कि संगीत मौके पर रचनात्मकता दिखाने और कला को सहज तरीके से प्रदर्शित करने के बारे में है, जो कला की वास्तविक समझ देता है और यह उस अवधारणा से आता है जिसका आप प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। सभी तबला वादकों और नवोदित संगीतकारों को अपने दिमाग में यह कल्पना करनी होगी कि वे क्या प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने विभिन्न प्रकार के प्रदर्शनों के बारे में भी बात की।डॉ. चिश्ती ने कहा कि एक तबला वादक को कविता की तरह अपना बेलेंस बनाए रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि संगीत में एक व्यक्तिगत संगीतकार या एक संगतकार के रूप में करियर लोगों के प्रशिक्षण पर निर्भर करता है।उन्होंने कहा कि मेरी समझ और मेरा अनुभव भारतीय संगीत के कई शिक्षकों से सीखने का परिणाम है और मेरे प्रदर्शन पर मेरे शिक्षक, लखनऊ परिवार के प्रसिद्ध तबला नवाज खलीफा उस्ताद अफाक हुसैन खान ने अमिट छाप छोड़ी है।डॉ. चिश्ती ने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें ‘फन-ए-तबला’, ‘तबला संचयन’, ‘तबला में दस अंकों का महत्व’, ‘भारतीय तालों में ठेके के विभिन्न स्वरूप’ ‘यूनिक तबला गट्स’ और कम्पोजीशन आफ द ग्रेट तबला मेस्ट्रोज़ शामिल हैं।डा. चिश्ती को प्रशंसा पत्र भी प्रदान किया गया।