अलीगढ़, 26 नवंबरः महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस’ के अवसर पर ’आन्तरिक परिवाद समिति’ की ओर से ’महिलाओं के बढ़ते शोषण और उसके उन्मूलन’ विषय पर आई.सी.सी. भवन में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में आई.सी.सी. की पीठासीन अधिकारी प्रोफेसर सीमा हकीम, समिति के अन्य सदस्य, प्रोफेसर संगीता सिंघल, डा फज़ीला शाहनवाज़, डा सुबूही अफज़ल, अदीला सुल्ताना हिंदी विभाग, डा नीलोफ़र उस्मानी, समाज कार्य विभाग, डा मोहम्मद उज़ैर, आई.सी.सी. और अन्य विभाग के कर्मचारी एवं शोधार्थी उपस्थित थे।
प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग, जेएन मेडिकल कालिज की वरिष्ठ प्रोफेसर एवं आई.सी.सी. की पीठासीन अधिकारी प्रोफेसर सीमा हकीम ने वक्ताओं एवं श्रोतागणों का स्वागत करते हुए महिलाओं की घरेलू हिंसा और उसके उन्मूलन के लिए किये जाने वाले प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होनें कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को महिलाओं के शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिए। यह कार्य सबसे पहले हमें अपने परिवार से प्रारंभ करना होगा। यदि एक व्यक्ति अन्य पांच व्यक्तियों को इसके लिए जागरुक करेगा तो निश्चित रूप से एक दिन पूरा समाज परिवर्तित हो जायेगा। आई.सी.सी. की सदस्य एवं शरीर विज्ञान विभाग की प्रोफेसर संगीता सिंघल ने कहा कि माता-पिता को अपने लड़की-लड़कों का पालन-पोषण एक समान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बाल्यावस्था से ही लड़की को पराया धन कहकर उसको लड़कों से कमतर नहीं समझना चाहिए। बाल्यावस्था का यही लालन-पोषण भविष्य में लिंग असमानता का भाव विकसित करता है।
हिंदी विभाग की अस्सिटेंट प्रोफेसर डा0 नीलोफ़र उस्मानी ने ’महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस’ के उद्देश्य को बताते हुए इन पंक्तियों के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि महिलाओं पर होने वाले अत्याचार और हिंसा को रोकना है। तभी परिवार, समाज और देश का विकास होना है।उन्होंने कहा कि अब महिलाओं को इस समाज से निर्णय लेने की आज़ादी लेनी है, स्वयं ही अपने सामाजिक और कानूनी अधिकारों को पहचानना है। वह कमज़ोर नहीं, लाचार नहीं, है तो बस भेदभाव की शिकार, उसे तो बस अब अपने अधिकारों के लिए लड़कर बराबरी का दर्जा लेना है। यदि उसके शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा की सुविधा सुनिश्चित की जाये, तोे वह दिन दूर नहीं जब उसकी पहचान पिता-पति-पुत्र से न होकर खुद ही के नाम से हो जाये।आई0सी0सी0 की सदस्य एवं इतिहास विभाग की अस्सिटेंट प्रोफेसर डा0 फज़ीला शाहनवाज़ ने कहा कि यह जो दिवस मनाये जाते हैं यह केवल समाचारपत्रों के शीर्षक तक ही सीमित नहीं होने चाहिए बल्कि इनके उद्देश्यों को व्यावहारिक जीवन में लागू करना चाहिए। महिलायें स्वयं अपने पर हो रहे शोषण को नहीं समझ पाती है। वह इसको अपनी नियति समझकर झेलती रहती हैं।आई.सी.सी. की सदस्य एवं सामुदायिक चिकित्सा विभाग की सी0एम0ओ0 डा0 सुबूही ने बताया कि कई स्थानों पर महिलायें ही महिलाओं पर अत्याचार करती हैं। कोविड-19 के कारण महिलाओं की घरेलू हिंसा में बढ़ोत्तरी हुयी है। आई0सी0सी0 की सदस्य एवं जे0एन0एम0सी0एच0 की अदीला सुल्ताना ने कहा कि महिलाओं का केवल शारीरिक शोषण ही नहीं होता है बल्कि मानसिक और भावात्मक शोषण भी होता है। अपने को कमतर समझने के कारण वह अपने पर होने वाले शोषण को स्वीकार करती चली जाती है। इतिहास विभाग के शोधार्थी मुजतबा अहमद ने बताया कि महिलाओं को अपने शोषण के विरुद्ध स्वयं बोलना होगा। उसको साहसी, आत्मनिर्भर होकर ही समानता का अधिकार मिल सकता है। कर्मचारी वर्ग से ताजदार हुसैन ने यू0एन0ओ0 में स्त्री-पुरुष समानता को लेकर चल रहे मुहिम के बारे में बताया।