प्रोफेसर स्टीफ़न क्रेशेन का श्लेखन के रहस्यश् पर आनलाइन व्याख्यान

अलीगढ़, नवंबर 17ः प्रख्यात अमेरिकी भाषाविद्, शैक्षिक शोधकर्ता, राजनीतिक कार्यकर्ता और दक्षिण कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एमेरिटस, डा स्टीफन डी क्रेशेन ने अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के भाषाविज्ञान विभाग द्वारा आयोजित वेब वार्ता में ‘लेखन के रहस्य’ विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया।

अपने व्याख्यान में उन्हों ने कहा कि यदि आप सर्वाेत्तम कच्चे माल और इनपुट का उपयोग नहीं करते हैं तो आप उत्कृष्ट उत्पादन कैसे कर सकते हैं? आपको जो भी मिल सके, सबसे अच्छी किताबें पढ़ें, और उन्हें बार बार पढ़ने से न डरें।उन्होंने कहा कि हम अध्ययन से भाषा अर्जित नहीं करते हैं, और हम बहुत ज़्यादा लिखने से अच्छे लेखक नहीं बनते हैं। इनपुट मायने रखता है, आउटपुट नहीं। लेकिन वास्तविक लेखन हमें समस्याओं को हल करने और हमें स्मार्ट बनाने में मदद कर सकता है। यह बड़े पैमाने पर संशोधन और जो हमने लिखा होता है उसे बार बार पढ़ने और उस में सुधार करने से संभव होता है।पीटर एल्बो का कथन कि ‘अर्थ वह नहीं है जिससे आप शुरुआत करते हैं, बल्कि वह है जिससे आप अंत करते हैं’, सन्दर्भ के रूप में प्रस्तुत करते हुए प्रोफेसर स्टीफन ने जोर देकर कहा कि संशोधन और पुनः पढ़ना सुधार के लिए रास्ता बनाता है और व्यक्ति को लेखन के महत्वपूर्ण पहलुओं की जांच करने का अवसर देता है।

उन्होंने कहा कि जो लोग अधिक पढ़ते हैं, वे बेहतर लिखते हैं, वे बेहतर उच्चारण करते हैं, उनके पास बड़ी शब्दावली, बेहतर व्याकरण और अधिक स्वीकार्य योग्य लेखन शैली होती है।प्रोफ़ेसर स्टीफ़न ने विस्तार से बताया कि प्रसिद्ध लेखक अर्नेस्ट हेमिंग्वे कितने सरल भाषी और प्रत्यक्ष धर्मी थे और उन्होंने अक्सर अपने लेखन के कई ड्राफ्ट के माध्यम से किस प्रकार काम किया।लेखकों के लिए ‘संशोधन’ के महत्व को और स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि चार्ल्स डार्विन ने एक बार कहा था, ‘मुझे पहली बार बनाई गई एक भी परिकल्पना याद नहीं है जिसे एक समय के बाद छोड़ न दिया गया हो या उसमें बहुत संशोधन न किया गया हो’।उन्होंने नवोदित लेखकों से अच्छे पठन और पुनर्पाठन, मसौदे को संशोधित करने, योजना बनाने और जब भी आवश्यक हो पुनः योजना बनाने, काम के बीच छोटे ब्रेक लेने, दैनिक लेखन, मूल विचारों पर कार्य करने और केवल वह पढ़ने का आग्रह किया जो पढ़ना चयनित विषय पर लिखने के लिए आवश्यक हो क्योंकि बहुत अधिक पढ़ने से भूलने की आदत भी पड़ जाती है।प्रोफेसर स्टीफन ने शोध पत्र लिखने के लिए शुरुआत में ही संक्षिप्त सारांश, निष्कर्ष, निहितार्थ और भविष्य के शोध के साथ मुख्य विचार, सहायक विचारों, प्रक्रिया और निष्कर्षों को स्पष्ट करने का सुझाव दिया। उन्होंने परिचय को छोटा रखने और अस्वीकृति से परेशान न होने की भी सलाह दी।प्रोफेसर स्टीफन ने कहा कि प्रकाशित किए गए सभी डेटा लें और इसका पुनः विश्लेषण करें और आसान उपायों के लिए तैयार रहें।उन्होंने यह कहते हुए अपनी बात समाप्त की कि सामान्य भलाई के लिए वैज्ञानिक जानकारी मुफ्त होनी चाहिए।स्वागत भाषण में, भाषाविज्ञान विभाग के अध्यक्ष, प्रोफेसर एम जे वारसी ने प्रोफेसर स्टीफन के अध्यन के महत्वपूर्ण क्षेत्रों के बारे में बताया।उन्होंने कहा कि प्रोफेसर स्टीफन भाषा अधिग्रहण और विकास के सिद्धांतों में माहिर हैं। उनके हाल के अधिकांश शोधों में गैर-अंग्रेजी और द्विभाषी भाषा अधिग्रहण का अध्ययन शामिल है। 1980 के बाद से उन्होंने 100 से अधिक पुस्तकों और लेखों को प्रकाशित किया है और पूरे संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के विश्वविद्यालयों में उन्हें 300 से अधिक व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जा चुका है। ‘समझ की परिकल्पना’ सिद्धांत के लिए जाने जाने वाले प्रोफेसर स्टीफन भाषा शिक्षा के क्षेत्र में अधिकतम बार उद्धृत विद्वानों में से एक हैं।प्रश्न और उत्तर सत्र का संचालन प्रोफेसर इम्तियाज हसनैन ने किया, जबकि डा नाज़रीन बी लस्कर ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया।संयुक्त राज्य अमेरिका, यमन, मोरक्को, मिस्र, ताइवान, फिलीपींस, न्यू मैक्सिको, दक्षिण एशियाई और मध्य अमेरिकी देशों के 300 से अधिक प्रतिभागियों ने वेब टाक में भाग लिया।

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