अलीगढ़। एएमयू में आयोजित सर सैयद डे के मौके पर अंतरराष्ट्रीय इतिहासकार प्रोफेसर फ्रांसिस रॉबिन इंटरनेशनल सर सैयद एक्सीलेंस अवार्ड से सम्मानित किया गया जबकि पदम भूषण प्रोफेसर गोपीचंद नारंग को नेशनल सर सैयद एक्सीलेंस अवार्ड से सम्मानित किया गया। इंटरनेशनल अवार्ड पाने वाले रॉबिंसन को ₹200000 की राशि दी गई जबकि नेशनल अवार्ड पाने वाले गोपीचंद नारंग को ₹100000 की धनराशि दी जाएगी।
प्रोफेसर फ्रांसिस राबिन्सन को प्रशस्ति पत्र और दो लाख रुपये का नकद पुरस्कार से सम्मानित किया गया जबकि प्रोफेसर गोपी चंद नारंग को प्रशस्ति पत्र के साथ एक लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया गया।
अंतर्राष्ट्रीय श्रेणी में सर सैयद उत्कृष्टता पुरस्कार प्राप्त करते हुए प्रोफेसर फ्रांसिस राबिन्सन ने कहा कि एएमयू, जो यूपी के मुसलमानों द्वारा बनाई गई एक महान संस्था है, जिसका इतिहास वह पचास वर्षों से पढ़ रहे हैं, से सर सैयद अंतर्राष्ट्रीय उत्कृष्टता पुरस्कार प्राप्त करना एक सम्मान की बात है। उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है कि आपने मेरे काम को पढ़ा, समझा और महत्व दिया है। यह पुरस्कार सर सैयद अहमद खान के नाम से जुड़ा होने के कारण भी सम्मान जनक है। मैं सर सैयद की उनके नेतृत्व, साहस और दृढ़ संकल्प के लिए लंबे समय से प्रशंसा करता रहा हूं।
एक इतिहासकार के रूप में अपने काम की व्याख्या करते हुए प्रोफेसर फ्रांसिस राबिन्सन ने जोर देकर कहा कि यह पता लगाना कि किसी अन्य समय में किसी अन्य स्थान पर मानव होना क्या मायने रखता है तथा इस प्रक्रिया में उन लोगों के प्रति सम्मान रखना जिन्हें मैं पढ़ रहा हूं, कैसा है, मेरी रूचि का मूल विषय है।
उन्होंने कहा कि यूपी के मुसलमानों के संदर्भ में मुस्लिम राजनीति का उदय, उन्नीसवीं शताब्दी से प्रिंट को व्यापक रूप से अपनाना और धर्म और राजनीति पर इसका प्रमुख प्रभाव, धार्मिक परिवर्तन के पहलू, उनमें से ‘प्रोटेस्टेंट’ इस्लाम के स्वरूपों का उदय, धार्मिक परिवर्तन और आधुनिकता के स्वरूपों का विकास, जैसे व्यक्तिवाद; और उलेमा की दुनिया आदि पर मैंने गहनता से अध्ययन किया है।
पुरस्कार के लिए कुलपति को धन्यवाद देते हुए प्रोफेसर फ्रांसिस राबिन्सन ने कहा कि यह पुरस्कार जिस काम को मान्यता देता है वह आंशिक रूप से मेरा ही नहीं बल्कि यूपी के मुसलमानों का भी है, जिनमें से कई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से जुड़े हैं।
राष्ट्रीय श्रेणी में सर सैयद उत्कृष्टता पुरस्कार से सम्मानित, प्रोफेसर गोपी चंद नारंग ने कहा कि सर सैयद, मुगलों के पतन और ब्रिटिश प्रभुत्व के साथ आने वाली एक भयानक दिल्ली में कुलीन वर्ग में पैदा हुए, शहर के सांस्कृतिक धरोहर के उदार प्रभाव के तहत बड़े हुए, लेकिन शिक्षा के माध्यम से सुधार लाने के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया।
उन्होंने कहा कि सर सैयद चाहते थे कि भारतीय आधुनिक विज्ञान में रूचि लें और 1869-70 में इंग्लैंड की यात्रा पर आक्सफ़ोर्ड और कैम्ब्रिज के दौरे से वे इतने प्रभावित हुए कि वे उसी मॉडल पर एक संस्थान स्थापित करना चाहते थे।
उन्होंने कहा कि सर सैयद ने कहा था कि ‘भारत एक खूबसूरत दुल्हन है और हिंदू और मुसलमान उसकी दो आंखें हैं। अगर उनमें से एक खो जाए तो यह खूबसूरत दुल्हन बदसूरत हो जाएगी’।
प्रोफेसर नारंग ने जोर देकर कहा कि “सर सैयद का जीवन एक खुली किताब था और उन्होंने सभी धर्मों के लोगों के लिए एमएओ कालेज के दरवाजे खुले रखे। उन्होंने हमेशा कहा कि हिंदुओं और मुसलमानों ने एक-दूसरे से संस्कृति को उधार लिया और अपनाया है”।