दुनिया का एक मात्र हस्तलिखित है Newspaper ‘द मुसलमान’
चेन्नई से प्रकाशित होता है यह दुनिया का अनोखा अखबार
मोहम्मद रफीक
अलीगढ़। एक छोटी सी जगह पर जब हमने एक कागज पर लोगों को लिखते हुए देखा तो ऐसा लगा कि उनके हाथों में कोई जादू है और मषीन की छपाई से अच्छा लिख रहे हैं। यह सारा मंजर देखकर दंग रह गए और हैरत में पढ़ गए कि इस आधुनिक तकनीक के दौर में कोई ऐसा भी है जो अपने हाथों से अखबरों के पन्नों को सजाता है और दुनिया को पढ़वाता है, हां हम उसी चार पन्ने वाले उर्दू के अखबार ‘द मुसलमान’ की बात कर रहे हैं जो चेन्नई से छपता है और सन् 1927 में स्थापित हुआ था। यह अखबार आज भी वैसे ही अपनी पहचान रखता है। इस दफ्तर में महज चार से पांच लोग काम करते हैं। इस अखबार की छापने की विधि को काॅलिग्राफी कहते हैं। यानि हस्तलिखित। यह 94 साल से लगातार छप रहा है। इस अखबार के संपादक सैयद अरिफुल्ला ने इससे संबंधित कई महत्वपूर्ण बाते बताई जो हैरान करने वाली थीं, लेकिन पिछले दस सालों से इस अखबार की हालत बहुत अच्छी नहीं है।
आरिफ उल्लाह के दादा अजमतुल्लाह ने ‘द मुसलमान’ की षुरूआत 1927 में की थी। इसके बाद आरिफ उल्लाह के पिता सैयद फैजुलउल्लाह ने अपने पिता की पंरपरा को कायम रखा और अब वो इसकी जिम्मदारी निभा रहे है। आरिफ उल्लाह बताते है कि 1927 में अखबार की षुरूआत दादा अजमतुल्लाह ने की उसके बाद पिता फैजुलउल्लाह ने कई सालों तक चलाया। इस अखबर को हर तरह की न्यूज को छापा जाता है जैसे कुरान, हदीस, खेल, राजनीति आदि। हमारे दोस्तों और रिष्तेदारों ने सुझाव दिया कि इस आधुनिक युग में हम लोग भी कंप्यूटरीकृत हो जाए, लेकिन यह मुमकिन नहीं है। अखबार को पढ़ने वाले इसी से बहुत खुष हैं क्योंकि वो काॅलिग्राफी को अच्छे से समझते हैं। इसमें काम करने के साथ मैंने फैसला लिया कि मैं इसी के लिए अपनी पूरी जान लड़ा दूंगा। उन्होंने बताया कि आजादी से पहले उत्तर भारत में कई प्रमुख समाचार पत्र उर्दू में थे। इन अखबारों को देष के सभी लोग पढ़ते थे वो चाहे किसी भी धर्म का हो। लेकिन बंटवारे के बाद उर्दू का असर खत्म हो गया और कई अखबार बंद हो गए।
अखबर के पन्ने
आरिफ उल्लाह बताते है कि अखबार को पढ़ने वाले पूरे देष में हैं, हम यहां से डाक के माध्यम से ऐसे लोगों को अखबार भेजते जिन लोगों ने इसकी सदस्यता ले रखी है। उन्होंने बताया कि अखबार में सरकारी निविदाओं के साथ कुछ निजी विज्ञापन अंग्रेजी और उर्दू में छपे होते हैं। पहले पेज पर अंतरराष्ट्रीय समाचारों पर जोर देने वाली शीर्ष कहानियों के लिए है। पृष्ठ दो में संपादकीय है, और अन्य दो पृष्ठ स्थानीय समाचारों और विज्ञापनों के लिए हैं। सोमवार का संस्करण अलग है – कुरान पर अधिक लेख और कुछ इस्लामी इतिहास हैं।
कैसे तैयार होता है ‘द मुसलमान’ अखबार
अरिफ उल्लाह खुद ही चारों पन्नों की ब्रॉडशीट में लगभग सभी लेखों को चुनते हैं। उन्होंने बताया कि द मुसलमान के देश के अलग-अलग हिस्सों में पत्रकार हैं, द इकोनॉमिस्ट की तरह अखबार में बाइलाइन नहीं होती है। हर सुबह लगभग 10 बजे, दो अनुवादक आते हैं और उर्दू में समाचार प्रकाशित करते हैं। अगले दो घंटों में, पेपर के तीन कॉलिग्राफर अर्थात कातिब सुलेख पेन का उपयोग करके प्रत्येक समाचार को बड़ी मेहनत से ब्रॉडशीट पर लिखते हैं। इसके बाद बड़ी मेहनत से स्क्रिप्टिंग की जाती। इसके बाद इसके सभी पन्नों पर विज्ञापन लगाए जाते हैं और इसकी नेगेटिव बनाई जाती है। यह दोपहर 1 बजे के आसपास प्रिंट हो जाता है और षाम तक अपने पाठकों तक डाक पहुंच जाता है। हालांकि इसकी कीमत महज 75 पैसे है, जो देष का सबसे सस्ते अखबार है।
मुसलमान अखबार छापने का मकसद मुसलमानों की आवाज को उठाना था, दादा को लगता था कि मुसलमानों की आवाज उठाने वाला कोई नहीं है, इसलिए उन्होंने इस अखबार को शुरू किया। मुसलमानों को काॅलिग्राफी से बहुत अधिक लगाव था। अगर हम इसे खत्म कर देंगे और आधुनिक टेक्नोलाॅजी से जुड़ जाएंगें तो हममें और उनमें कोई भी फर्क नहीं रहेगा। काॅलिग्राफी मुसलमान के दिल की तरह है, अगर हम इसे खत्म कर देंगे तो सब कुछ खत्म हो जाएगा।
आरिफ उल्लाह, संपादक द मुसलमान
सभी अखबार डिजिटल हो गए है, लेकिन मेरा जुड़ाव मुसलमान अखबार से है। यह अखबार सेकुलर है और हमेषा हर धर्म की खबरों को इसमें प्राथमिकता मिली है और भारत के विकास के लिए अखबार ने जमकर काम किया है।
उस्मान गनी, उपसंपादक द मुसलमान
मुझे उर्दू से लगाव ज्यादा है। उर्दू से ही काम सीखी और उर्दू से ही काम खत्म करूंगी।
खुर्शीद बेगम कातिब, द मुसलमान
हम तीस साल से हैं और हमें मुसलमान से सहूलत दिखती है। मुसलमान अखबार की वजह से ही हमें इज्जत और शोहरत मिलती है। जब तक हाथ पैर हैं तब तक मुसलमान में काम करूंगा।
रहमान हुसैन कातिब, द मुसलमान
दुनिया में हमीं ही काॅलिग्राफी में लिखते हैं, टीवी हो या अखबार हो कहीं पर किताबत नहीं चल रही है, यह सिर्फ द मुसलमान में ही चल रही है। यह चार पेज ही मुसलमान के हाथ से लिखा हुआ है।
शबाना बेगम कातिब, द मुसलमान