अलीगढ़, 16 नवंबरः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वद्यालय के हिंदी विभाग में हिंदी भाषा की प्रख्यात लेखिका मन्नू भंडारी के निधन पर शोक सभा का आयोजन किया गया। उनका कल दिनक 15.11.2021 को गुड़गांव के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह 91 वर्ष की थीं।तीन अप्रैल, 1931 को मध्य प्रदेश के भानपुरा में जन्मीं मन्नू भंडारी प्रसिद्ध साहित्यकार राजेंद्र यादव की पत्नी थीं। उनके पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने अंग्रेजी से हिंदी और अंग्रेजी से मराठी के शुरुआती शब्दकोशों में से एक की रचना की थी।
मन्नू भंडारी राजस्थान के अजमेर शहर में पली-बढ़ीं। उन्होंने अजमेर में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए की उपाधि प्राप्त की। मन्नू जी ने अपने करिअर की शुरुआत एक हिंदी प्राध्यापक के रूप में की थी। 1952-1961 तक उन्होंने कोलकाता के बालीगंज शिक्षा सदन, 1961-1965 में कोलकाता के रानी बिड़ला कालेज, 1964-1991 में दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज में पढ़ाया और 1992-1994 तक उन्होंने उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय में प्रेमचंद सृजनपीठ का निदेशक पद संभाला।मन्नू भंडारी को ‘नई कहानी’ आंदोलन के अग्रदूतों में से एक माना जाता था, जो एक हिंदी साहित्यिक आंदोलन था। पचास और साठ के दशक में बदलाव के मामले में समाज थोड़ा परिवर्तन के दौर से गुजर रहा था। शहरीकरण और औद्योगीकरण की शुरुआत हो रही थी, इसने और अधिक साहित्यिक बहस और चर्चा का अवसर खोल दिया था।मन्नू भंडारी ने “मैं हार गई“, “तीन निगाहों की एक तस्वीर“, “एक प्लेट सैलाब“, “यही सच है”, “आंखों देखा झूठ” और “त्रिशंकु” जैसी कई कहानियां लिखीं। मन्नू भंडारी को सबसे ज्यादा शोहरत “आपका बंटी” से मिली। इसमें प्यार, शादी, तलाक और वैवाहिक रिश्ते के टूटने-बिखरने की कहानी है। जबकि राजनीतिक विषय पर लिखे गये उपन्यासों में उनके उपन्यास “महाभोज” को हिंदी साहित्य में मील का पत्थर माना जाता है।उनका निधन निश्चय ही हिंदी साहित्य की एक अपूरणीय क्षति है। उनके निधन पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ का समस्त हिंदी विभागगहरी शोक-संवेदना प्रकट करता है।








