आईपीएस की सेवा में लगे सिपाहियों को हटाने का आदेश

दिल्ली से वरिष्ठ पत्रकार इंद्र वशिष्ठ की खास रिपोर्ट

नई दिल्ली। दिल्ली में अपराध से निपटने या कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए बेशक पुलिस कम पड़ जाए। लेकिन आईपीएस अफसरों की सेवा मेंं पुलिसकर्मी हमेशा उपलब्ध रहते हैं। 

वरिष्ठ पत्रकार इंद्र वशिष्ठ


दिल्ली पुलिस में तैनात आईपीएस अफसरों के लिए ही नहीं, दिल्ली से हजारों मील दूर के राज्यों में तैनात आईपीएस अफसरों की सेवा में भी दिल्ली पुलिसकर्मियों को लगा दिया जाता है। यहीं नहीं सेवानिवृत्त होने के बाद भी आईपीएस इस सेवा का लाभ उठा सकते हैं। बस उसकी एक ही पात्रता हैं कि वह आईपीएस दिल्ली पुलिस में तैनात रहा हो। और तो और आईएएस अफसर को भी आईपीएस अफसर यह सुविधा उपलब्ध करा देते हैंं।
हालांकि ऐसा कोई नियम नहीं है, और न ही ऐसा कोई नियम हो सकता कि आईपीएस किसी दूसरे राज्यों में तैनात हो, तब भी दिल्ली पुलिस का सिपाही उसके साथ तैनात किया जा सके।
आईपीएस किसी अफसर/ पुलिसकर्मी को अपने साथ सरकारी कार्य के लिए डेपुटेशन पर तो ले जा सकता है। जैसा कि पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने किया है बीएसएफ से दो अफसर और दो ड्राइवर को डेपुटेशन पर वह दिल्ली पुलिस में लाए हैं।


सिपाही क्या गुलाम हैं-
सिपाहियों को अस्थाई रुप से आईपीएस के पास बिना किसी ठोस कारण के तैनात करना या गुलाम की तरह उनका निजी/ घरेलू कार्य के लिए इस्तेमाल किया जाना पुलिसकर्मियों का दुरुपयोग और एक तरह से उनका शोषण करना है।  


आईपीएस का भाईचारा-
असल में यह आईपीएस अफसरों का आपस का भाईचारा है कि वह एक दूसरे को निजी सेवा के लिए भी सिपाही, रसोइया, ड्राइवर, कार आदि उपलब्ध करवाते हैं। 
ऐसा करने वाले आईपीएस अपने निजी फायदे के लिए सरकारी खजाने को चूना लगाते है। क्योंकि  सरकार सिपाही को वेतन सरकारी कार्य के लिए देती है ना कि आईपीएस के निजी/ घरेलू कार्य करने के लिए।


सामंती मानसिकता-
सामंती मानसिकता वाले ऐसे अफसर सिपाहियों को गुलाम समझते हैंं। दूसरे राज्यों में तैनात अफसरों के दिल्ली में स्थित घर परिवार की सेवा, देखभाल के लिए पुलिसकर्मियों का इस्तेमाल किया जाता है।


सिपाहियों को हाजिर होने का आदेश-
यह परंपरा जारी है इसका खुलासा एक आदेश से भी हो जाता है।
आठ अक्टूबर को द्वारका जिले के डीसीपी की ओर से उनके मातहत द्वारा एक आदेश जारी किया गया। जिसमें दस पुलिसकर्मियों को आदेश दिया गया कि वह तुरंत जिला पुलिस लाइन में हाजिर हो, वरना आदेश का पालन न करने पर उनका वेतन रोक दिया जाएगा। इस आदेश के मुताबिक यह दस पुलिसकर्मी नौ अफसरों के साथ अस्थाई रुप से तैनात हैं।
दबंग दीपक मिश्रा- आदेश के अनुसार दिल्ली पुलिस में भी रह चुके और सीआरपीएफ के अतिरिक्त महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए दबंग आईपीएस दीपक मिश्रा के साथ हवलदार अनिल अस्थाई रुप से तैनात है।
पुदुचेरी डीजीपी- दिल्ली पुलिस में रहे और आजकल पुदुचेरी के पुलिस महानिदेशक रणवीर सिंह कृष्णियांं के साथ सिपाही विजय पाल तैनात है।
इस समय अंडमान निकोबार द्वीप समूह में तैनात आईपीएस मधुप तिवारी के साथ सिपाही अशोक तैनात है।
दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा में तैनात आईपीएस सुनील कुमार गौतम के साथ सिपाही बिजेंद्र तैनात है।
संयुक्त पुलिस आयुक्त बी के सिंह के साथ एएसआई प्रताप और सिपाही सतीश तैनात हैं।
आईबी में तैनात आईपीएस एंटो अल्फोंस के साथ सिपाही विनोद तैनात है। 
यह वहीं एंटो अल्फोंस हैं जो द्वारका जिले से तीन टच स्क्रीन कंम्प्यूटर बिना कागजी कार्रवाई के अवैध तरीक़े से उत्तरी जिले में ले गए थे। इस पत्रकार के पूछने पर उन्होंने कंप्यूटर लाने से साफ इंकार कर दिया था।
इस पत्रकार द्वारा यह मामला उजागर किया गया । तत्कालीन कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव की जानकारी में यह मामला लाया गया, तब उन्होंने पता लगाया तो कंप्यूटर एंटो के पास ही मिले। इसके बाद कंप्यूटर एंटो की री एलोकेट करके बचा लिया गया। अगर यह मामला उजागर न होता तो तीन कंप्यूटर का गबन हो जाता।
दिल्ली पुलिस में डीसीपी (सिक्योरिटी) आर पी मीणा के साथ सिपाही मनोज तैनातहै। 

आईएएस अफसर रामगोपाल के साथ सिपाही संदीप तैनात है। इसके  अलावा विक्रम जीत के साथ सिपाही जितेंद्र तैनात है। विक्रम जीत का पद आदेश में नहीं लिखा गया है।
जान को खतरा नहीं है-
यह सिपाही अफसरों की जान को खतरे के कारण तैनात नहीं किए गए। क्योंकि सुरक्षा के लिए तैनात होते, तो इस तरह से तुरंत जिला लाइन मेंं हाजिर होने का आदेश नहीं दिया जाता। जान को खतरा होता, तो सिपाही आईपीएस के साथ साये की तरह रहता। ऐसा नहीं होता कि जिसकी जान को खतरा है वह अफसर दूसरे राज्यों में तैनात और उनका सुरक्षाकर्मी दिल्ली में है।
दूसरा सुरक्षा के लिए तैनात करने के लिए तो उस व्यक्ति की जान को खतरे का आकलन समेत बकायदा एक पूरी  प्रक्रिया का पालन किया जाता हैं। सुरक्षा विभाग से पुलिसकर्मी तैनात किया जाता है।


किस आधार पर तैनात किए ?
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि  आईपीएस अफसरों को, खासकर जो दूसरे राज्यों में या डेपुटेशन पर हैं या सेवानिवृत्त हो गए हैं, तो उन्हें पुलिसकर्मी किस आधार या किन नियमों के तहत उपलब्ध कराए गए हैं ?
अगर नियमानुसार तैनात किए गए हैं, तो अचानक उन्हें तुरंत जिला लाइन हाजिर होने का आदेश देना और वेतन रोकने की धमकी क्यों दी गई। क्या सिपाही अनुशासनहीन हैं कि वह वेतन रोकने की धमकी देने पर ही हाजिर होंगे।


किन अफसरों ने तैनात किया?-
अगर नियमों के खिलाफ अस्थाई रुप से तैनात किया गया था तो वह कौन-कौन से आईपीएस हैं जिन्होने इन पुलिसकर्मियों की तैनाती का आदेश दिया था ? 
बाबू की इतनी हिम्मत है ?- यह आदेश उजागर होने के बाद मामले में नया मोड आ गया।
द्वारका जिले के डीसीपी शंकर चौधरी ने मीडिया में कहा कि यह आदेश उनकी स्वीकृति यानी अप्रूवल के बगैर बाबू ने उनकी ओर से जारी कर दिया है। इसलिए उस बाबू को निलंबित कर जांच की जा रही है। 
डीसीपी के बयान में विरोधाभास हैं क्योंकि अगर उनकी स्वीकृति के बिना आदेश जारी हुआ है, तो फिर यह सीधा सीधा जालसाजी का ही मामला बनता है। लेकिन फिर भी वह इसे जालसाजी नहीं मानते। 
उल्लेखनीय है कि आदेश में साफ लिखा है कि डीसीपी की स्वीकृति से जारी किया गया है।
बाबू क्या अपने  स्तर पर आईपीएस अफसरों के यहां तैनात पुलिसकर्मियों को हटाने की हिम्मत कर सकता है ?
वैसे यह हो सकता है कि आदेश वायरल होने के बाद उपरोक्त आईपीएस अफसरों के कोप से बचने के लिए बाबू को बलि का बकरा बनाया गया हो।


खुलासा तो हुआ-
वैसे चाहे आदेश डीसीपी की स्वीकृति के बिना जारी किया गया हो, लेकिन इससे यह खुलासा तो हो ही गया कि आईपीएस अफसरों के पास अस्थाई रुप से एक जिले से ही कितने पुलिसकर्मी तैनात हैं। बाकी 14 जिलों , बटालियन और सिक्योरिटी आदि इकाइयों से कितने पुलिसकर्मी अस्थाई रुप से आईपीएस की सेवा में लगे होंगे, उसका अंदाजा लगाया जा सकता हैं।
वैसे इस आदेश पर अमल होने की संभावना बहुत ही कम हैं क्योंकि आईपीएस द्वारा एक दूसरे को ऐसी सेवाएं उपलब्ध कराने की परंपरा हैं और वह इस तरह की सेवाएं लेना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं। 
आईपीएस नायक बनो, खलनायक नहीं- आईपीएस सिर्फ़ यूपीएससी परीक्षा में पास होने के समय ही मीडिया में ईमानदारी और आदर्श की बड़ी बड़ी बातें करते हैं। कुर्सी पर बैठने के बाद ईमानदारी से कर्तव्य पालन और आदर्श आचरण की मिसाल पेश करने वाले विरले ही होते हैं।


सिपाही अब कहां हैं?-
पुलिस मुख्यालय और द्वारका के डीसीपी शंकर चौधरी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि जिन पुलिसकर्मियों को जिला लाइन में हाजिर होने का आदेश दिया गया था, क्या वह अब जिला लाइन में आ गए हैं या अभी तक उपरोक्त आईपीएस अफसरों के यहां पर ही तैनात हैं।


सुरक्षा में सैंकड़ों पुलिसकर्मी तैनात- 
पुलिस के सुरक्षा विभाग ने हाल में एक ऑडिट किया है। जिसमें पाया गया कि पुलिस के करीब साढ़े पांच सौ जवान पूर्व पुलिस कमिश्नरों, पूर्व जजों, पूर्व नौकरशाहों  और नेताओं के यहां तैनात है। जबकि उनकी जान को खतरा है या नहीं इसका आकलन तक भी पिछले कई साल से नहीं किया गया। जबकि  नियमानुसार हर छह महीने में खतरे का आकलन किया जाना चाहिए।
कई पूर्व कमिश्नर के पास तो दस- पंद्रह पुलिसकर्मी तक तैनात है। सुरक्षाकर्मियों के अलावा घरेलू काम के लिए रसोईया, ड्राइवर आदि अलग से तैनात हैं।
इन पुलिसकर्मियों को वहां से हटा कर या संख्या कम करके उन्हें पुलिस के कार्य में लगाया जाएगा।
इसके अलावा स्पेशल सेल के अफसरों की सुरक्षा में भी कटौती की गई है।
जिन्हें वास्तव में खतरा है उन्हें ही सुरक्षा दी जाएगी।
दूसरी ओर सुरक्षा इकाई में पुलिसकर्मियों की संख्या पहले ही कम है। स्वीकृत पद 6828 है लेकिन 5465 पुलिसकर्मी ही हैं।

कमिश्नर आईपीएस पर अंकुश लगाएं-
पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना को आईपीएस अफसरों द्वारा पुलिसकर्मियों, रसोईए और कार आदि संसाधनों के निजी इस्तेमाल/ दुरुपयोग पर रोक लगानी चाहिए।
दबंग कमिश्नर-आईपीएस अफसर द्वारा तबादले के साथ ही अपने निजी स्टाफ यानी चहेते पुलिस कर्मियों को भी साथ ले जाने पर तत्कालीन पुलिस अजय राज शर्मा ने अंकुश लगाया था।
इसके बाद तत्कालीन पुलिस कमिश्नर युद्धवीर सिंह डडवाल ने भी पूरी दबंगता से आईपीएस अफसरों द्वारा पुलिसकर्मियों, रसोईए और कार आदि संसाधनों के दुरुपयोग को रोक दिया था।

(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में तीस साल से क्राइम रिपोर्टिंग कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)

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